इस खुदकर्ज़ दुनिया में थोडा खुदगर्ज तू भी हो जा
वर्ना यह दुनिया
तुझे खुदी से जीने नहीं देगी
फिर मिलेंगे
मै आज अपनी झूलती हुई कुर्सी पर बेठा ,मंद हवा के चादर से लिपटा हुआ , चाय की सुसकियो के बीच ढलतेे सूरज को नीहार रहा था । एक आजीब सा तेज,आजीब सा आकर्सण था उसकी लालिमा में जो मुझे खुद से दूर ,कही दूर ले जा रहा था और उसको देखते देखते मै कब अतीत के पन्नों में समां गया ,पता ही नहीं चला।कोन कहता हे की वक़्त के सफ़र के लिए टाइम मशीन चाहिए,आपकी सोच ही काफी है ............................................................................ . . .. . .....................................मेरे वो ख्वाब मुझे मेरी जिंदगी के 18वे आध्ये में ले गए जहाँ से मेने सही मायनो में अपने बचपन की सुरुआत की थी। शायद यह पहल इसलिए थी ताकि मै अपने बचपन को देख सकु ,मासूस कर सकु ,और जी सकु जिसे मेने आज की जिंदगी मे पूरी तरह नकार दिया है।।।
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आज के मुकाबले में बचपन में मै काफी मोटा ताज़ा था और काफी लाडला भी था-( अपने घर में और पाड़ोस में भी )( सायद इसलिए क्योंकि वो गाँव था जहाँ अगर एक को चोट लगती थी तो दूसरे को भी दर्द होता था और अगर आपने गाँव नहीं देखा तो अपने भारत को नहीं देखा, गाँव में पालने वाले प्यार को नहीं देखा तो अपने सच्चे प्यार की परिभासा को नहीं समझा,वहाँ प्यार हे ,दर्द हे और तो और वहाँ के हर जीज में एक आजीब से महक के जो आपके अंदर एक भाव पैदा करती है,लागव पैदा करती हे, मिलने और बिछडने का आह्सास पैदा करती है)
कभी कभी तो लोग मुझे सररतो का पुलुन्दा भी कहते थे और ढेरो शिकायते मेरी घर पर आती थी पर डॉट कभी नहीं पड़ती थी क्योंकि मै अपने घर में कम दुसरो के घर में ज़्यादा रहता था........मै सुबह तीन बजे उठ जाता था क्योंकि उस वक़्त मेरे दादा जी भैस सा दूध निकलते थे , और मुझे कच्चा दूध पीने में बड़ा मज़ा आता था,क्योंकि उसको पीने के बात जो सफ़ेद मुछे बनती थी उनको लेकर मै पुरे घर में घुमा करता था फिर नाहा धोकर ,पूजा करने के बात में दादी के पीछे लग जाता था ताकि मुझे दही और मलाई मिल जाये,इस बात का लोग बहुत फायदा उठाते थे, मतलब की जब तक मुझे सामान नहीं मिलता मेरी सररतो पर पाबन्दी लग जाती थी पर वो कुछ देर की होती थी , मुझे एक खेल काफी पसंद था, वो था भैसो को छेड़ना, मै भैसों की तरफ जाता ,वो मुझे मारने जे लिए आगे बढती और मै पीछे भाग जाता और ऐसा करने पर में खूब हँसता, आम के पेड़ के नीचे बैठकर घंटो आम गिरने का इंतज़ार करता और ऎसे ही करते हुए मेरा बचपन बीतता गया जब उन लोगो ने मेरा एडमिशन गाव के स्कूल में करा दिया ,जहाँ से निकलने में लोग अक्सर डरा करते थे क्योंकि वो स्कूल एक बाग़ में था और बच्चे तो वैसे भी शैतान का रूप होते हे,वहां पढ़ाई कम भूतिया खेल जयादा होता था और जब छुटटी होती थी तो पुरे गाव को पता चल जाता था की तुफानो का आतंक आ गया ह , वहाँ मेरी पढ़ाई नहीं हो पायी इसलिए मुझे घर से दूर वाले स्कूल में नाम लिखवाया गया, पर मै स्कूल जाने वाले वक़्त घर पर मिलता ही नहीं था और कभी गलती से पकड़ में आ भी जाऊ तो आधे रस्ते से भाग आता था पर सायद वो मेरी गलती थी क्योंकि उसी ने मुझे मेरे दादा दादी से अलग कर दिया और फिर राह चुनी गयी देल्ही की, एडमिशन हुआ अनजान सहर था ,इसलिए साररते काफी काम होगयी, पर धीरे धीरे दोस्त बनाने लगे और सरारत फिर चालू, उस समय एक सीरियल आता था शक्तिमान, हम उसके खूब एक्टिंग करते थे और जैसे ही मेने 5वि पास की मेरी जिंदगी ने एक रफ़्तार पकड़ ली और फिर जा कर रुकी 12वि में, जब मुझे iit jee का चस्का लगा उस साल काफी acha रिजल्ट आया-board 86 परसेंट एंड jee में 68000 रैंक पर चॉइस फिलिंग की एक गलती ने मुझे ड्राप करने पर मजबूर कर दिया और उसी साल (विनास काले विपरित बुद्धि, )मेने आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली , जिसे मै अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती मानता हु (उसकी कहानी बात में सुनाऊँगा, ) फिलहाल तो मै एक एवरेज कॉलेज से मेकैनिकल eng क्र रहा हु । कॉलेज की मस्ती के बारे में सोच ही रहा था की मछरो की भिनभिनाहट ने मेरी आँखे खोल दी-यह सा** मछर चैन से जीने भी नहीं देते, कमीने साले। कितना अच्छा सपना देख रहा था, सब मिट गया। कुर्सी से उठा , पूरी रात हो चुकी थी, काफी वक़्त लगा दिया।।। अभी तो अस्सीगणमेंय भी कम्पलीट करना हे और पेपर भी आ रहे हे वो भी तैयार करना हे....................
(( www.parivartanthechange.blogspot.com guys this is my blog , this is not as much as good as other, BT it is in progress.)
Message ---मेरा बस इतना कहना हे की इन्शान को अपनी जिंदगी के कुछ पल गाव में जरूर बीतने चाहिए।।।।।।।।।।।।।।।