Saturday, 8 November 2014

टिकट





    टिकट की माथापच्ची है.
   बात मेरी तो सच्ची ह 
   टिकट मुझे दिलवाद्ये प्यारे 
   मेरी इमेज न अच्छी है 
   इमेज मेरी जो अच्छी होती 
   तो क्या मै नेता बनता 
  छोड़ शरीफो कि मैफिल 
  मै  क्यों गुंडों में सामिल होता 
  चोर चोर मौसरे भाई कहावत कहलाती है 
  छल कपट के मंजर से सीता लंका को आती है
  जात पात में तुमे बाटकर हमने तो रोटी सेकी
 जब जब आते ही चुनाव ,,
  हमने वादो कि बोटी फेकी
 तुम सडको पर घुट घुट जीते
  ठाट भाट हम रहते है
 तुम तरसो तो बूँद बूँद
  हम भोग भी छपन लेते है
 शैतानो कि टोली भी
  हमसे तो डर कर रहती है
 हम जो रास्ता   काट दिए
 तो बिल्ली घर को लौटी है
मेरा सच न जाने कु कुछ फीका फीका लगता है
मेरी बातो के पीछे गन्घोर अंधेरा दीखता है 

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