Friday 21 November 2014

मै ,आज



बेचैन दिल  मेरा कुछ करने को चाहता है
पर क्या करू यह समझ नहीं आता हे
उठा पटक  का आया कुछ ऐसा मंज़र हे
मेरी आँखे आज आसुओ  समंदर है
रह रह कर   मेरी पुरानी यादे मुझको कसोटती हे
ईर्षा ,निंदा और घृाड़ा के बीच मुझमे पिरोती हे 

थक गया हु मै ,,ऐसी जिंदगी जीते जीते 
जहा व्यर्थ की पुकार हे ,,भावनाओ का व्यापर हे 
और डर डर  का भंडार है 
जहा हर वक़्त पुरानी सोच नए मुददो पर हावी होती हे 
जहा हर समय दिल और दिमाग़ में जंग छिड़ी होती हे 
जहा वक़्त से ज्यादा हम खवाबो में जीते हे ,,,
सच की परिभासा से भी डरते हे 
कुछ करना न पड़े ,,,इसलिए सपनो के आँगन में सोते हे 
जहा दिमाग को भट्टी बनाकर ,,बोली में आग भरते हे 
जहा  अरमानो की धुंद  से ,, मकसद को पर रखते हे 
कहते तो बहुत हे ,,,की हिम्मत और हौसले से सब मिलता हे 
पर राहे  अगर भटकी हो तो अँधेरा ही दिखता है। 

No comments:

Post a Comment