Tuesday 21 October 2014

ख़्वाब



 

      ये मेरे ख्वाबो के परिंदे रुक जा ,ठहर जा ,,थोड़ा               आराम    तो कर
      फिरे जो तेरे संग संग यह बेचैन दिल ,,इसे थोड़ा              शांत      तो कर
      तेरी आहटों से मचलाहटो का दोर आता हे
      तेरी सुगबुगाहट ओ  से हर गली , हर शहर में शोर            आता हे। \\\      to be cont.                      
                                 

मंजिल




मै चल निकला हु नई मंज़िल की और
नई सोच ,, नई आरज़ू ,,,नई दिशाएं लेकर
पाने उस मुकाम को ,,,जिसका सपना मेरी आँखो में पलता है
जिसको पाने की जिद ने मुझे जिन्दा रख रखा हे
मगर कुछ उन्सुल्झे सवाल अभी भी हे
क्या में यह कर पाउँगा जैसे ख्वाब  हे \\\\\

व्वस्था परिवर्तन की लडाई



धधक धधक तेरा दिल जले ,,,
 लहू को अपनी आंच दे ...
 मान दे सम्मान दे ,,
 तू खुद को सविमान दे ....
 जो हो चुका सो हो चुका ,,,
  तू इक नया इतिहास दे...
 जो दब चुकी आवाज़ है ,,
  उसको तो थोड़ी धार दे 
  वार तुज़ पे हो रहे ,,,
  तू चैन से है क्यों पड़े ....
  खतरे में तेरी जान ,,
   पल पल लुटता इमान है ..
  जो रहनुमा थे ,,,
  आज कल कातिलो में सुम्मार हे 
  चोर सारे बन चुके है ,,
  घर अपना भर चुके है 
 लूटने चले हे अब  तेरे 
  घर की आन को 
 मान को सम्मान को 
  तेरे सविमान को,
 वरना मत कहियो यार 
 यह  दुनिया बेकार है ,,,
 खाने का आकाल है 

 मेरा नेता मालामाल है ,,,,
नौकरी वौकरी  है नहीं 

 ना ही सम्मान है ,,,,,
दवाई कहाँ से लाऊ यारो 

 मेरा बच्चा बीमार है ////

हम से





   हज़ारो आँसुओ को छुपाकर,,,
  होठों से मुस्कुराना कोई हम से सीखे

  दिल में पलते हर इक जख़्म को दबाकर ,,,
,जीना  कोई हम से सीखे

  यू तो रोज गालियां देते हे हम इन नेताओ को
 मगर मौजूदगी में इनकी खुशामत करना कोई हम से सीखे \\\\\\\\\\

.गरीब आदमी








मै कोसता रहता  हू , वो कसीदे पढ़ते है 
मेरी गरीबी को वो गरीबी नहीं मनोदशा कहते है 
जमीं पर न रखे हो पाव जिसने कभी ,
वो क्या समझे हमारी गरीबी को ,,,,
हमें तो अपने कफ़न के लिए भी मोल भाव करने पड़ते हे.............

हंगामा ,





मै कुछ बोलु तो हंगामा ,
न कुछ बोलू तो हंगामा ,
ख्यालो में हे हंगामा ,
सवालो में हे हंगामा ,
दिलो में आग जलती हे ,
तभी उठता हे हंगामा ,
कभी सूरत बदलती है ,
कभी नासूर बनते है ,
यह हंगामे कभी तो खुद ही की भेंट चढ़ते है ,
यह न पूछो या क्यों  कदर बरपा हे हंगामा ,
अगर मकसद हो अच्छा तो तख्तो ताज हिलते है ,

जंग खुद से





यहाँ पे जंग खुद से हे ,,, न बाते कर यहाँ गैरो की। … 
दिलो में दर्द इतना हे ,,,,,,न बाते कर यहाँ गैरो कि… 
दिलो की आरज़ू जब भी जगे,, तब भी लड़े गैरो से,,,,,
मगर कोई जरा सोचे ,,, भिड़े हम खुद से  ही कसे....???????

..मै नहीं,हम





हे तुम्हारी सख़्सियत तब तक , जब तक हम न कुछ बोले… 
हवाए शांत  हे तब तक जब तक हम न कुछ बोले…।  
हमारी खामोशी को तुम सहमति मत समझ लेना। .... 
लगे कितना भी यु  खामोश ,, धरातल शांत नहीं होते। … 


यह दिल डरपोक कितना हे ,, नज़ारे ढूढ ता  हे यो 
सच से सामना न हो,, बहाने ढूढ ता हे यो… 
हे मालूम हर इक को की दिल में आग जलती हे 
व्यवस्था चरमराती हे,,, जब भी साँच ढलती है। ............

चुनाव


लगेगा फिर यू सपनो का इक बाज़ार  दुनिया में 

उठेगा फिर वाह वाही का इक अम्बार दुनिया में 

दुनिया में वही होगे जो कल तक शान से रहते थे 

सत्ता में जो  यू  रहकर, तुजे  बेकार कहते थे 

आज गिड़गिड़ाये गे यो तेरे सामने हर दिन 

तय तुज को करना है , तुजे सपनो में जीना ह… 

या घुट घुट मरते ही तुजे तो यु ही रहना है 

राजनीति

राजनीति करने चले हम ,
 इज़ज़त घर पे रखके 

इज़ज़त का क्या करना ह,
 जब लड़ना है पार्टी के दम पे… 

देश का करना हित नहीं ,
यह अपना फंडा  मैन 

जेब भरे हम नोटों से
 और खादी पहने प्लैन 

सारा इलेक्शन का हे फंडा
करती पार्टी इक दूजे नू नंगा 

आरोप प्रत्यारोप का दौर चलाओ ,
टेबल के नीचे से जीभर के घूस खाओ 

क़नून व्यस्था ऐसी न कुछ होने वाला वाला है 
राजा कलमाड़ी तो छोड़ो ,
 उन दरिंदो [16 dec] को फांसी में न डाला है 

मज़हब पर आरक्षण देकर दंगा खूब भड़काओ 
गलत हुआ अगर तो
 दूजी पार्टी नु आरोप लगाओ 

सीखो इन नेताओ से कितने बड़े कमीने 
 पंच वर्षीय एजेंडा लेकर पहुंचे आप से मिलने 

हे अहिंशा वादी हम,,सबको यही देखाओ 
गलती से कोई आवाज़  उठे
 तो उस पे लाळ  प्डवाआए 

 ईस  कार्रेर में प्यारे अपनी चांदी चांदी हे 
देश को लूटो चाहे जितना
 बस लक्ष्मी आनी आनी हे 

सीखो मेरे विचारो से यह दिल कि सच्चाई हे। 
विकास कि राह में यह एक दलदल खाई ह 

response
हम ह बिजी लोग
 अपने को क्या करना ह 
क्या कर लेगे हम अकेले
 जब थोडा सा ही जीना हे 


सोच बदलिए अपणो
तब व्वयस्था बदलेगी 
विकास कि यह राह

 तब शायद  कुछ  सुधरगी