Tuesday, 21 October 2014

..मै नहीं,हम





हे तुम्हारी सख़्सियत तब तक , जब तक हम न कुछ बोले… 
हवाए शांत  हे तब तक जब तक हम न कुछ बोले…।  
हमारी खामोशी को तुम सहमति मत समझ लेना। .... 
लगे कितना भी यु  खामोश ,, धरातल शांत नहीं होते। … 


यह दिल डरपोक कितना हे ,, नज़ारे ढूढ ता  हे यो 
सच से सामना न हो,, बहाने ढूढ ता हे यो… 
हे मालूम हर इक को की दिल में आग जलती हे 
व्यवस्था चरमराती हे,,, जब भी साँच ढलती है। ............

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