Tuesday, 21 October 2014

राजनीति

राजनीति करने चले हम ,
 इज़ज़त घर पे रखके 

इज़ज़त का क्या करना ह,
 जब लड़ना है पार्टी के दम पे… 

देश का करना हित नहीं ,
यह अपना फंडा  मैन 

जेब भरे हम नोटों से
 और खादी पहने प्लैन 

सारा इलेक्शन का हे फंडा
करती पार्टी इक दूजे नू नंगा 

आरोप प्रत्यारोप का दौर चलाओ ,
टेबल के नीचे से जीभर के घूस खाओ 

क़नून व्यस्था ऐसी न कुछ होने वाला वाला है 
राजा कलमाड़ी तो छोड़ो ,
 उन दरिंदो [16 dec] को फांसी में न डाला है 

मज़हब पर आरक्षण देकर दंगा खूब भड़काओ 
गलत हुआ अगर तो
 दूजी पार्टी नु आरोप लगाओ 

सीखो इन नेताओ से कितने बड़े कमीने 
 पंच वर्षीय एजेंडा लेकर पहुंचे आप से मिलने 

हे अहिंशा वादी हम,,सबको यही देखाओ 
गलती से कोई आवाज़  उठे
 तो उस पे लाळ  प्डवाआए 

 ईस  कार्रेर में प्यारे अपनी चांदी चांदी हे 
देश को लूटो चाहे जितना
 बस लक्ष्मी आनी आनी हे 

सीखो मेरे विचारो से यह दिल कि सच्चाई हे। 
विकास कि राह में यह एक दलदल खाई ह 

response
हम ह बिजी लोग
 अपने को क्या करना ह 
क्या कर लेगे हम अकेले
 जब थोडा सा ही जीना हे 


सोच बदलिए अपणो
तब व्वयस्था बदलेगी 
विकास कि यह राह

 तब शायद  कुछ  सुधरगी 

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