Friday 5 December 2014

Smile please

सुना हे,की आज कल मेरे घर पे चप्पलो का ढेर काफी है

चलो पता तो चला, की मेरी कविताओ का ख़ौफ़ बाकि है

और जब जब गलियों से निकलू मै

,सन्नाटा छा जाता हे ,कोई नजर नहीं आता है

, कुत्ते भी दुबक जाते हे, पत्ते खुद से लिपट जाते हे, 

हवाए रुख बदल लेती हे, घटाए सूरज को ढ़क लेती हे,

घड़ियां भी सुन हो जाती हे , चिड़िया पतंग हो जाती हे
,
मंजर भूतिया हो जाता हे,और भूत भी डर कर हनुमान चालीसा गाता हे,

और शायद उन्हें डर इस बात का हे,की कही उनकी आवाज़ों को अपनी वाह वाही ना कह दू,

उन्हें अपनी अगली कविता का शिकार न कर दू



और सुना हे,की आज कल शहरो में दंगे नहीं होते हे

क्योंकि वो(दंगाई)गालियो की जगह मेरी कविताये ही तो कहते हे

और सुनकर मेरी कविताये ,वो इस हालत में ही नहीं रहते की कुछ कर पाये

शुक्र हो खुदा का जो अस्पतालों में जगह पाये

वरना मेरे शिकार को तो पानी भी नसीब न हो पाये

और कब्र में दुबारा मर दिए जाए,गलती से जो मेरी कविता गुनगुनाये

मेरी कविताओ पे सबने आपत्ति जाता रखी हे

मुझ बेचारे पर अकेले धारा 144लगा रखी हे

और सरकारे भी आजकल मुझ से ख़ौफ़ खाती हे

वपक्षि पार्टीया रैली को फ्लॉप करने के लिए चंदा दे जाती हे

मुझे देखते ही सावधानी हटी,दुर्घटना घटी के नारे बुलंद होते हे

मेरे उपचार के सारे दावे विफल होते हे ,
सारे दावे विफल होते हे

                              To be cont.

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