Saturday 29 November 2014

My role toward clean India

आज से करीब 1साल पहले हम कुछ दोस्त मिले , सभी अपने अपने कॉलेज को ज्वाइन करने ही वाले थे, और हँसी माज़क के इस दौर के बीज मेने उन लोगों से कहा "चल भाई , अपनी एक सोसाइटी या ngo बनाते हे, क्योंकि कॉलेज में वक़्त काफी होता हे, और कॉलेज से निकलने के बात सभी अपनी लाइफ सेट करने में लग जाते हे, और फिर सामाज को उतना वक़्त नहीं दे पाते, और कुछ न हो, social network को बन ही जाएगा, सब मान गए, और discussion next round के लिए छोड़ दिया, अगली बार जब हम मिले तो दो दोस्त कम थे,  और आते ही उन्होंने मुझ पर सवालो के तीर छोड़ दिए जो की जायज थे , फिर बात करनी सुरु की तो डिफरेंट डिफरेंट views आये, उन में से एक था, lets क्लीन the city, उसका कहना था की हम कुछ areas को सेलेक्ट करते हे, और फिर वहाँ पर सफाई करके symbolic message देगे, plan was good, but समझ सकते हो, की एक अच्छे background से आने के वजह से हमको यह काम पसंद नहीं आया, दोस्तों ने उसका काफी माजक उड़ाया, it must be a joke apart for us, but it convey a strong message that in India there is no dignity of labour , आज़ादी के 67 साल बात भी हमारा नाजरिया नहीं बदला हे, उसके बात हम कभी नहीं मिले, वो अपने रास्ते, में अपने ।
आज से चंद रोज़ पहले उनका फोन आया, कहा की मिलाना चाहते हे, सोचा एक साल हो गए थे, ऎसे ही मिलाना चाहते होंगे पर उस समय मै लखनऊ में था ,  वहाँ मै एक ngo ("amrit foundation" ) के प्रोग्राम (clean and decent india) का गवाह बना,लोगो का रिस्पांस काफी अच्छा था उस प्रोग्राम को लेकर, मै अक्सर उनके awareness program में कविताए सुनाता था, जिसकी कुछ लाइन यु हे............................
आवाज़ उठी हे जन जन से अब धूल(गन्दगी) नहीं रहने देगे
अब और गरल अपमानों का , हम खुद नहीं पीने देगे
बदलाव जिंदगी में कुछ लाकर ,
ऐसा कुछ कर जाएगे, मान करेगी दुनिया सारी,
आदर्श इस्तापित कर जाएगे।।।।।
delhi आकर उन दोस्तों से मिला तो पता चला की वो लोग भी मेरी तरह pradan mantri के swaach bharat से काफी inspired हे और इस दिशा में कुछ करना चाहते हे, एक एरिया select किया गया, पहले एरिया उत्तम नगर ही था, पर हम उत्तम नगर से थोडा अनजान थे, इसलिए humane कुछ सामाजिक लोगो से मदत लेनी चाही, rahi जी, वेणु जी, रमन जी और ऎसे ही कुछ चुन्दीदा लोगो ने हमारी मदत की, हम सुरुआत में ही उनके सुकरकुजर हे, फिर उनके साथ साथ हम  पुरे उत्तम नगर घुमे,
पर तस्वीर हैरान कर देने वाली थी, जगह जगह कूड़े के ढेर, देखने को मिलते थे ,  ऐसा नहीं हे सारी जगह गन्दी थी, कुछ जगह साफ़ भी थी, गन्दी जगहों का नाम ले तो सबसे पहले नाम आता हे, विपिन गार्डन के कुछ areas का, फिर ओम विहार (आर्यन स्कूल से just आगे) और बालाजी चौक, ओम विहार फेज 5 , और बिंदापुर के क्या कहने, यहाँ के तो कई इल्लाके ऎसे हे जगह मुझे नहीं लगता की पिछले 5 साल में वहाँ कोई आया होगा, और जबकि यहाँ उस पार्टी का निगम prasad हे जिसका चुनाव symbol ही झाड़ू  हे,,  और भी कई इलाके हे नन्द राम पार्क etc।
humane कुछ कॉउंसिल्लेरो से बात तो की पर उनमे से कुछ ने कहा के यह unauthorised colony हे, इनका कुछ नहीं ही सकता और कुछ ने कहा हो जाऐगा।। पर एक चीज़ samaj में जरूर आई ही ऊपर जितना अच्छा काम हो रहा हे, lower लेवल पर मजाक की istiti हे. इस नेक काम का कुछ लोगो ने मजाक बना कर रख दिया हे, सोचने की जरुरत हे, मै यह नहीं कहता की लोगो में बादलव नहीं आया हे, आया हे जरूर आया हे, और अच्छा बदलाव आया हे, पर सक हे ..इस मकसद के पूरा होने में........... और मै दिल से चाहता हु की मेरा यह सक गलत निकले और इस मकसद को कामियाबी मिले और हमारे देश का नाम रोशन हो
एक किस्सा सुनाता हूँ, मेरा एक दोस्त हे, विराट जो अपने लंच में अक्सर फल लाता हे, करीब एक साल पहले जब उसके साथ आता था वो अपना कूड़ा सड़क पर फेक देता था पर आज वो कुछ बदला बदला सा लग रहा था क्योंकि आज वो अपना छिलका अपने बैग में रख रहा था, कारन पूछा तो  उसने मुठी बंद करते हुए बोला swaach भारत अभियान, एक अजीब सा विश्वास था उसके अंदर, मै authorities से कहने चाहुंगा की प्लीज इनके विस्वास को मत टूटने देना, क्योंकि विश्वास एक बार होता हे, बार बार नहीं, (मै कुछ images डाल रहा हूं गन्दी जगहों की बाकि बाद में डालूँगा,)
एक बात और , dustbin की व्यवस्था होना बहुत जरुरी हे,  प्लीज authorities इस पर ध्यान दे , इस उम्मीद के साथ भारत स्वच्छ हो, स्वस्थ हो,मै विवेक द्विवेदी आपको एक नेक उम्मीद के साथ छोड़े जा रहा हु.,.............................................
जय हिन्द 


This blog is written for the compiagn http://www.abmontubolega.com/ this campaign is a nice one and this campaign is going to be an eye opener for the authorities . the image that is posted is by camera aur you can say that its real photo not driven by net

Wednesday 26 November 2014

आज से पहले

मै आज अपनी झूलती हुई कुर्सी पर बेठा ,मंद हवा के चादर से लिपटा हुआ , चाय की सुसकियो के बीच ढलतेे सूरज को नीहार रहा था । एक आजीब सा तेज,आजीब सा आकर्सण था उसकी लालिमा में जो मुझे खुद से दूर ,कही दूर ले जा रहा था और उसको देखते देखते मै कब अतीत के पन्नों में समां गया ,पता ही नहीं चला।कोन कहता हे की वक़्त के सफ़र के लिए टाइम मशीन चाहिए,आपकी सोच ही काफी है ............................................................................ .  .  ..  .  .....................................मेरे वो ख्वाब मुझे मेरी जिंदगी के 18वे आध्ये में ले गए जहाँ से मेने सही मायनो में अपने बचपन की सुरुआत की थी। शायद  यह पहल इसलिए थी ताकि मै अपने बचपन को देख सकु ,मासूस कर सकु ,और जी सकु जिसे मेने आज की जिंदगी मे पूरी तरह नकार दिया है।।।
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आज के मुकाबले में बचपन में मै  काफी मोटा ताज़ा था और काफी लाडला भी था-( अपने घर में और पाड़ोस में भी )( सायद इसलिए क्योंकि वो गाँव था जहाँ अगर एक को चोट लगती थी तो दूसरे को भी दर्द होता था और अगर आपने गाँव नहीं देखा तो अपने भारत को नहीं देखा, गाँव में पालने वाले प्यार को नहीं देखा तो अपने सच्चे प्यार की परिभासा को नहीं समझा,वहाँ प्यार हे ,दर्द हे और तो और वहाँ के हर जीज में एक आजीब से महक के जो आपके अंदर एक भाव पैदा करती है,लागव पैदा करती हे, मिलने और बिछडने का आह्सास पैदा करती है)
कभी कभी तो लोग मुझे सररतो का पुलुन्दा भी कहते थे और ढेरो शिकायते मेरी घर पर आती थी पर डॉट कभी नहीं पड़ती थी क्योंकि मै अपने घर में कम दुसरो के घर में ज़्यादा रहता था........मै सुबह तीन बजे उठ जाता था क्योंकि उस वक़्त मेरे दादा जी भैस सा दूध निकलते थे , और मुझे कच्चा दूध पीने में बड़ा मज़ा आता था,क्योंकि उसको पीने के बात जो सफ़ेद मुछे बनती थी उनको लेकर मै पुरे घर में घुमा करता था फिर नाहा धोकर ,पूजा करने के बात में दादी के पीछे लग जाता था ताकि मुझे दही और मलाई मिल जाये,इस बात का लोग बहुत फायदा उठाते थे, मतलब की जब तक मुझे सामान नहीं मिलता मेरी सररतो पर पाबन्दी लग जाती थी पर वो कुछ देर की होती थी , मुझे एक खेल काफी पसंद था, वो था भैसो को छेड़ना, मै भैसों की तरफ जाता ,वो मुझे मारने जे लिए आगे बढती और मै पीछे भाग जाता और ऐसा करने पर में खूब हँसता, आम के पेड़ के नीचे बैठकर घंटो आम गिरने का इंतज़ार करता और ऎसे ही करते हुए मेरा बचपन बीतता गया जब उन लोगो ने मेरा एडमिशन गाव के स्कूल में करा दिया ,जहाँ से निकलने में लोग अक्सर डरा करते थे क्योंकि वो स्कूल एक बाग़ में था और बच्चे तो वैसे भी शैतान का रूप होते हे,वहां पढ़ाई कम भूतिया खेल जयादा होता था और जब छुटटी होती थी तो पुरे गाव को पता चल जाता था की तुफानो का आतंक आ गया ह , वहाँ मेरी पढ़ाई नहीं हो पायी इसलिए मुझे घर से दूर वाले स्कूल में नाम लिखवाया गया, पर मै स्कूल जाने वाले वक़्त घर पर मिलता ही नहीं था और कभी गलती से पकड़ में आ भी जाऊ तो आधे रस्ते से भाग आता था पर सायद वो मेरी गलती थी क्योंकि उसी ने मुझे मेरे दादा दादी से अलग कर दिया और फिर राह चुनी गयी देल्ही की, एडमिशन हुआ अनजान सहर था ,इसलिए साररते काफी काम होगयी, पर धीरे धीरे दोस्त बनाने लगे और सरारत फिर चालू, उस समय एक सीरियल आता था शक्तिमान, हम उसके खूब एक्टिंग करते थे और जैसे ही मेने 5वि पास की मेरी जिंदगी ने एक रफ़्तार पकड़ ली और फिर जा कर रुकी 12वि में, जब मुझे iit jee का चस्का लगा  उस साल काफी acha रिजल्ट आया-board 86 परसेंट एंड jee में 68000 रैंक पर चॉइस फिलिंग की एक गलती ने मुझे ड्राप करने पर मजबूर कर दिया  और उसी साल    (विनास काले विपरित बुद्धि, )मेने आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली , जिसे मै अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती मानता हु (उसकी कहानी बात में सुनाऊँगा, ) फिलहाल तो मै एक एवरेज कॉलेज से मेकैनिकल eng क्र रहा हु । कॉलेज की मस्ती के बारे में सोच ही रहा था की मछरो की भिनभिनाहट ने मेरी आँखे खोल दी-यह सा** मछर चैन से जीने भी नहीं देते, कमीने साले। कितना अच्छा सपना देख रहा था, सब मिट गया। कुर्सी से उठा , पूरी रात हो चुकी थी, काफी वक़्त लगा दिया।।। अभी तो अस्सीगणमेंय भी कम्पलीट करना हे और पेपर भी आ रहे हे वो भी तैयार करना हे....................
(( www.parivartanthechange.blogspot.com guys this is my blog , this is not as much as good as other, BT it is in progress.)

Message ---मेरा बस इतना कहना हे की इन्शान को अपनी जिंदगी के कुछ पल गाव में जरूर बीतने चाहिए।।।।।।।।।।।।।।।

Friday 21 November 2014

राहे

हर राह को मै चाहू, हर मंजिल मुझको भाती है
मेरी कोई दिशा नहीं, सिर्फ हवा मुझे बहलाती है
प्रवाह जिधर भी तेज हुआ ,ते उधर निकल लेता हु मै
मांग जिधर भी तेज हुई, ते उधर खिसक लेता हु मै
मेरी आँखों के सपने हर पल पल पल पल बदले है
मेरे खवाबो के परिंदे ,आसमान में भटके हे
जाने की कोई राह नहीं ,बस आस लगाए बैठे हे
मन की बत्ती को बजाए ,जुगनू पे तो तरसे हे



काश काश के मंत्रो को मै  अब तक जबते आया हु
भेड़ चल के सम्मोहन से मै  खुद ना बच पाया हु
राह चुनी मेने ओ साहब जिसने मुझे मजबूर बनाया
अपने हाथो अपनी खुशियो का ही  मेने गला दबाया
काश तवज्जो दी होती मेने ही खुद की बातो को
तस्वीर अलग होगी मेरी सपनो की रातो को
नींद सुकून की मुझको आती साडी दुनिया मुझको भाती
जेब भले  ही छोटी   होती , सोच बड़ी तब रखता मै
अपनी राहे , अपनी मंज़िल खुद तभी तो बुनता मै।

मै ,आज



बेचैन दिल  मेरा कुछ करने को चाहता है
पर क्या करू यह समझ नहीं आता हे
उठा पटक  का आया कुछ ऐसा मंज़र हे
मेरी आँखे आज आसुओ  समंदर है
रह रह कर   मेरी पुरानी यादे मुझको कसोटती हे
ईर्षा ,निंदा और घृाड़ा के बीच मुझमे पिरोती हे 

थक गया हु मै ,,ऐसी जिंदगी जीते जीते 
जहा व्यर्थ की पुकार हे ,,भावनाओ का व्यापर हे 
और डर डर  का भंडार है 
जहा हर वक़्त पुरानी सोच नए मुददो पर हावी होती हे 
जहा हर समय दिल और दिमाग़ में जंग छिड़ी होती हे 
जहा वक़्त से ज्यादा हम खवाबो में जीते हे ,,,
सच की परिभासा से भी डरते हे 
कुछ करना न पड़े ,,,इसलिए सपनो के आँगन में सोते हे 
जहा दिमाग को भट्टी बनाकर ,,बोली में आग भरते हे 
जहा  अरमानो की धुंद  से ,, मकसद को पर रखते हे 
कहते तो बहुत हे ,,,की हिम्मत और हौसले से सब मिलता हे 
पर राहे  अगर भटकी हो तो अँधेरा ही दिखता है। 

क़ुर्बानी






यह वक़्त की नजाकत है ,,, या मेरे कर्मो का पाप
जिस जीज को चाहू मै वो साली दूर चली जाती है 
इसलिये तो तुझे कभी नहीं कहा मेने अपना 
तू रुस्वा ही सही पर पास तो रहती हे। 

Saturday 8 November 2014

स्वच्छ भारत अभियान





आवाज़ उठी है जन जन से
अब धूल [गन्दगी ] नहीं रहने देँगे
अब और गरल अपमानों का हम खुद नहीं सहने देंगे
बदलाव जिंदगी में कुछ लाकर ऐसा कुछ कर जाएगे
मान करेगी दुनिया सारी आदर्श इस्थापित कर जाएगे

अधूरा- सच


यू तो बात करते हे सभी अपने आदर्शो  कि
मगर पूरी  नहीं होती जब भी बात हो सच्ची
जाने  किन खयालो में यो रहते हे खुदा जाने
तमना हर किसी कि हर समय पूरी नहीं होती। ……………………


न सोचा था  कभी एक दिन की मौसम भी आएगा 
कूड़े के यू ढेरो से कोई रोटी चुराएगा 
वजह से जिनकी  जिंदगी आबाद हे इस ज़माने में [किसान ]
यही देखो सबक हमको जीवन अंत सीखते है


जिसे चाहा ,,जिसे पूजा वही  तो बेवफा निकला
सहीदो  कि शहादत से वही  तो बेखबर निकला
ज़माने में बिक़े हर चीज़,, जाने क्यों  यह लगता है [मुवाजा ]
कोई पूछे,जरा सोचे दिलो में दर्द कितना पलता  है /////

वेदना नारी की





अंधेरो कि काली छाया से मुझको डर  लगता हे
रावन कि तिरछी नज़रों से ही मुझको डर लगता हे
 मेरा डर नजायज नहीं , जायज पहलू ले बैठा हे
वयवसाय करण कि आंधी  ने मुझे बोझ समझ  के रखा हे


 जीवन का आरम्भ हुआ , संघर्ष तभी से जारी हे
सम्मानो को लड़ती आई हर अबला हर नारी हे
दुःशाशन आबाद हुए जब जब  कान्हा की मांग बड़ी
संसद भी थी मोन पड़ी जब जब नारी बेमौत मरी


नारी तो मरती रहती हे अपने ही चौराए पे
कही दहेज़ और कही तो अपनों की मनमानी पे
कही तेज़ाबो की बूंदे उसका तो जीवन वारे हे
और कही अग्नि की लपटों से ही सवर्ग सिधारे हे  \\\\\\

टिकट





    टिकट की माथापच्ची है.
   बात मेरी तो सच्ची ह 
   टिकट मुझे दिलवाद्ये प्यारे 
   मेरी इमेज न अच्छी है 
   इमेज मेरी जो अच्छी होती 
   तो क्या मै नेता बनता 
  छोड़ शरीफो कि मैफिल 
  मै  क्यों गुंडों में सामिल होता 
  चोर चोर मौसरे भाई कहावत कहलाती है 
  छल कपट के मंजर से सीता लंका को आती है
  जात पात में तुमे बाटकर हमने तो रोटी सेकी
 जब जब आते ही चुनाव ,,
  हमने वादो कि बोटी फेकी
 तुम सडको पर घुट घुट जीते
  ठाट भाट हम रहते है
 तुम तरसो तो बूँद बूँद
  हम भोग भी छपन लेते है
 शैतानो कि टोली भी
  हमसे तो डर कर रहती है
 हम जो रास्ता   काट दिए
 तो बिल्ली घर को लौटी है
मेरा सच न जाने कु कुछ फीका फीका लगता है
मेरी बातो के पीछे गन्घोर अंधेरा दीखता है