हे तुम्हारी सख़्सियत तब तक , जब तक हम न कुछ बोले…
हमारी खामोशी को तुम सहमति मत समझ लेना। ....
लगे कितना भी यु खामोश ,, धरातल शांत नहीं होते। …
यह दिल डरपोक कितना हे ,, नज़ारे ढूढ ता हे यो
सच से सामना न हो,, बहाने ढूढ ता हे यो…
हे मालूम हर इक को की दिल में आग जलती हे
व्यवस्था चरमराती हे,,, जब भी साँच ढलती है। ............
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